सचिन ए बिलियन ड्रीम्स:फिल्म समीक्षा।

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सचिन ए बिलियन ड्रीम्स:फिल्म समीक्षा।








सचिन तेंदुलकर को लोग कितना पसंद करते है ये बात तो हम सभी जानते है लेकिन इसकी झलक मुझे तब देखने को मिली जब मैं एक दिन आईपीएल मैच देख रहा था और कैमरा जैसे ही उनके और जाता रहा था पूरा ग्राउंड सचिन सचिन चिल्लाने लगता और वो भी इतने जोर जोर से की किसी के 90 मीटर के छ्क्के पे भी न लगे।




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सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट का भगवान कहा जाता है।अगर ये कहा जाये की इंडिया में क्रिकेट को लोकप्रिय बनाने में आधा योगदान  इनका है तो कोई गलत बात नही होगी।सचिन ने ही इतना लाजवाब प्रदर्शन करके बच्चो बच्चो के मुँह पे नाम चढ़वा लिया।

सचिन तेंदुलकर का अंतर्राष्ट्रीय करियर 24 वर्ष का रहा है। एक ढाई घंटे की फिल्म में उनका इतना बड़ा करियर,मैदान के अन्दर व बाहर की गतिविधियाँ,उनकी निजी जिंदगी को दिखाना कोई सरल काम नही  था लेकिन फिल्म के निर्देशक जेम्‍स अर्सकाइन इस काम को बखूबी कर दिखाया है और इस काम में सफल भी हुए है।


सचिन ए बिलियन ड्रीम्स में सचिन के बचपन से लेकर जवानीऔर अब तक के कालखंड दिखाया गया है और इसकी और ख़ास बात की इसमें और बायोपिक की तरह ज्यादा ड्रामा नही दिखाया गया और न ही किरदार किसी कलाकार ने निभाया है।इसमें सचिन के बचपन को एक किरदार की के द्वारा दिखाया गया है लेकिन आगे की जो कहानी है वो सचिन खुद कहते है।

इस फिल्म की शुरुआत सचिन के बचपन से होती है की किस तरह एक बच्चा जिसकी उम्र खेलने कूदने की है और वह क्रिकेट को लेकर इतना गंभी हो गया।फिल्म में सचिन के क्रिकेट को लेकर भूक को दर्शाया गया है क्रिकेट के प्रति उनकी रुचि और साहस को दर्शाया गया है उन्होंने किस किस ग्राउंड में कोण कोण सी यादगार पारिय खेली है ये भी दिखाया गया है और किस तरह से उनके गुरु रमाकांत आचेरकर ने उनसे कड़ी मेहनत और परिश्रम करवाया और उन्हें इस काबिल बनाया ये भी दिखाया गया है।


फिल्म में एक के बाद एक दर्शनिय दृश्य आते रहते है और दर्शक मंत्र्मुघ्ध होकर देखते रहते है।उनकी नाक पे गेंद लगना,अब्दुल कादिर को छ्क्के जड़ना,सचिन के पिता का निधन,विश्वकप के लिए इंग्लैंड वापस आना,उनका कप्तान बनना,2003 का फाइनल मैच,उनपे फिक्सिंग का साया,सचिन-वार्न सीरीज और भी कई यादगार लम्हे देखने को मिलते है और ये देखना सुखद लगता है।सिनेमाहाल में बैठा दर्शक उनकी भावनाओं से जुड़ सा जाता है।



इस फिल्म की सब घटनाये सचिन के नजरिये से दिखाई गयी है की सचिन उस वक़्त उस घटना में क्या सोच रहे थे कैसा महसूस कर रहे थे और क्या करना चाह रहे थे साथ ही उनके जीवन की वो बाते भी पता चली जो हमे नही पता थी जैसे अंजली से कैसे मिले,कौनसा मैच उनकी नजर में गलत तरीके से खेल गया,जब उनको गेंद लगी तो मियादाद ने उनसे क्या कहा।ड्रेसिंग रूम के कई फुटेज भी हमे देखने को मिलें   उनकी निजी जिन्दगी को भी करीब से देखने का मौका मिला जो फिल्म की विश्वनीयता को बढ़ाते है।


फिल्म के कुछ दृश्य कमल के है जैसे युवा सचिन से क्रिकेट प्रेमी ऑटोग्राफ ले रहे है और पास में ही बैठे अजहरुद्दीन को कोई पूछ भी नही रहा सचिन के ख़ास दोस्त विनोद काम्बली के किरदार को फिल्म में जगह नही दी गयी है।



जेम्‍स अर्सकाइन ने अपना प्रस्तुतिकरण घुमाव फ़िरावदर न रखके सीधा व सरल रखा है उन्होंने सचिन को एक हीरो की तरह पेश किया है जो फिल्म,स्क्रिप्ट और उनके फंस सभी की मांग थी।
सचिन कई बार कैमरे के सामने थोडा असहज हो जाते है लेकिन इस बात को भुलाया जा सकता है क्यूंकि वो अभिनेता नही है।इसके बावजूद उन्होंने अपना किरदार निभाया इस बात की तारीफ होनी चाहिये।अपने आखरी टेस्ट मैच में दिए हुए भाषण से फिल्म को ख़तम करना निर्देशक की सूझबूझ और कुशलता को दर्शाता है।


सचिन अ बिलियन ड्रीम्स उनको भी पसंद आएगी जो सचिन के फैन नही है और न ही क्रिकेट के।
सचिन के फैन्स का यह मूवी देखना तो समझिये उनका धर्म है।

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