संस्कृत भाषा मे बनी पहला फ़िल्म

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संस्कृत दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक मानी जाती है, पर संस्कृत में पहली फिल्म 1983 में बनी जब महान डायरेक्टर गणपति अय्यर ने आदि शंकराचार्य (1983) बनाई। ये फिल्म आदि शंकराचार्य के जीवन और उनकी फिलोसफी के बारे में थी। सर्वदमन बनर्जी ने इसमें टाइटल रोल निभाया था। गणपति अय्यर को भारतीय सिनेमा के महानतम और सबसे जिद्दी डायरेक्टर्स में से एक माना जाता है। इन्होंने शंकराचार्य फिल्म को संस्कृत में बनाने का फैसला इसलिए किया क्युकी वो सिनेमा को असलियत के करीब रखने में विश्वास रखते थे। उन्होंने इस फिल्म के ज्यादातर सीन उसी जगह फिल्माए जहा के बारे में वो सीन था। शंकरायचार्य शायद भारतीय सिनेमा के पहले डायरेक्टर थे जिन्होंने सनातन फिलोसॉफी को लेकर एक वैदिक सिनेमैटिक यूनिवर्स क्रिएट किया। उनकी पहली संस्कृत फिल्म आदि शंकराचार्य को चार नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया था।


 

शंकराचार्य पर संस्कृत में फिल्म बनाने के बाद अय्यर ने सनातन के दो और संत के जीवन पर फिल्म बनाई, माधवाचार्य (1986) और रामानुजआचार्य (1989)। माधवाचार्य फिल्म को उस साल का बेस्ट म्यूजिक के नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया था। ये अवार्ड बाल मुरलीकृष्णन को उनकी संगीत रचना के लिए दिया गया था जो लगातार गणपति अय्यर की फिल्मों का संगीत देते रहे। शंकराचार्य के जीवन पर संस्कृत में फिल्म बनाने के बाद जीवी अय्यर ने माधवाचार्या को कन्नड़ भाषा में बनाया था। अपनी ट्रायलॉजी की तीसरी फिल्म उन्होंने तमिल भाषा में रामानुजचार्य बनाई। ये तीनों फिल्मे एक गहरी रिसर्च पर आधारित थी, इन फिल्मों को जीवी अय्यर ने भारत की तीन मुख्य भाषाओं में बनाया था, पुराने समय की कहानी होने के बावजूद कम बजट में अय्यर ने किसी तरह की कोताही नहीं की, सीन की मांग के हिसाब से लोकेशन कॉस्ट्यूम जैसी जरूरी चीजे अय्यर ने असलियत के करीब रखी।

इसके बाद अय्यर ने अपने करियर की दूसरी संस्कृत फिल्म भागवत गीता (1993) बनाई, ये फिल्म महाभारत के युद्ध में कृष्ण और अर्जुन के बीच हुए संवाद पर आधारित थी पर इस फिल्म में गीता कहने वाले के प्वाइंट व्यू के बजाय गीता सुनने वाले अर्जुन के प्वाइंट ऑफ व्यू को दिखाया था, इस फिल्म के नीना गुप्ता ने द्रौपदी का रोल निभाया था। इस फिल्म ने उस साल के बेस्ट फिल्म का नेशनल अवार्ड जीता था और बोगोटा फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट फिल्म के लिए नॉमिनेशन हासिल किया था।

इस फिल्म के बाद अय्यर ने अपने करियर की आखिरी फिल्म हिंदी भाषा में बनाई। ये फिल्म स्वामी विवेकानंद के जीवन पर आधारित थी, स्वामी विवेकानन्द (1998) में स्वामी विवेकानंद का रोल शंकराचार्य का किरदार निभाने वाले सर्वदमन बनर्जी ने किया था। इस फिल्म में सबसे सरप्राइजिंग एलिमेंट मिथुन चक्रवती थे, इसमें उन्होंने रामकृष्ण का रोल किया था और उनके बेहतरीन अभिनय के लिए उन्हे इस साल के बेस्ट सुपोर्टिंग एक्टर के नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया था। इस फिल्म के गीत गुलजार ने लिखे थे। ये फिल्म अपनी सिनेमेटोग्राफी, और अन्य सिनेमा की बारीकियों के लिए सिनेमा के इतिहास में एक खास जगह रखती है।

अय्यर की फिल्मों में जहां एक तरफ सिनेमा की बारीकियां दिखती थी वही दूसरी तरफ जीवन, मृत्यु, संसार को लेकर वो बहुत विस्तृत फिलोसॉफी दर्शको के सामने रखते थे। अय्यर गांधी के विचारो से बहुत प्रभावित थे, वो हाथ से बनी खादी पहनते थे और गांधी की मृत्यु के बाद उन्होंने नंगे पांव रहने का फैसला किया और जीवन भर नंगे पैर ही रहे, इस दौरान उन्होने पूरे भारत का भ्रमण किया, एक बार एक फिल्म की लोकेशन ढूंढते वक्त वो दुर्घटना के शिकार भी हुए पर अगले दिन पट्टियों में सेट पर पहुंच गए, उनकी दुर्घटना के बाद उनके साथी कलाकारों ने फिल्म को बंद मान लिया था, पर अय्यर अपने क्राफ्ट और पैशन के लिए बहुत समर्पित थे।

अपने जीवन के आखिरी समय में वो रामायण को परदे पर उतारना चाहते थे, रावण के रोल के लिए संजय दत्त के नाम की चर्चा थी, पर फिल्म बनने से पहले ही 2003 में अय्यर का देहांत हो गया। धार्मिक इतिहास पर फिल्मे बनाने के कारण अय्यर कई बार विवादो से भी जूझते रहे, उन्हे अपनी फिल्मों में छोटे मोटे बदलाव भी करने पड़े। पर उन्होंने अपने करियर के आखिरी बीस साल इसी एक विषय को समर्पित कर दिए।

अय्यर ने कमर्शियल फिल्मे भी बनाई थी जो सफल भी हुई, पर उनका झुकाव हमेशा से जीवन दर्शन और धर्म की तरफ ही रहा।
भारतीय सिनेमा में हर भाषा का अपना अपना योगदान है, आज साउथ और हिंदी की लड़ाई जो दिखाई जाती है सिर्फ आपके इमोशन को कैश करने के लिए है, वरना हकीकत ये है की साउथ और हिंदी ने हमेशा कंधे से कंधा मिलाकर भारतीय सिनेमा को गौरवमयी फिल्मे दी है।

आज लोग साउथ की फिल्मों का इस्तेमाल हिंदी सिनेमा को नीचा दिखाने के लिए करते है,अगर उन्हे सच में साउथ के सिनेमा और सनातन धर्म से लगाव होता तो वो आपको जीवी अय्यर के बारे में भी बताते, पर जीवी अय्यर की फिल्मे आप देख लेंगे तो आपके सामने उन फिल्मों की कलई खुल जाएंगी जिन फिल्मों को महान बताकर ये रोजी रोटी चला रहे है।
आप जब असल सिनेमा देखेंगे तो आप को मालूम होगा कि सिर्फ हिंदी ही नही, भारत की अन्य भाषाओं की फिल्म इंडस्ट्री भी आज अपने गौरायमायी इतिहास से न्याय नहीं कर पा रही है, ऐसे लोगो से बचिए जो आपके इमोशन को कैश करके लाइक कॉमेंट कमाना चाहते है। गर्व कीजिए, पर सबसे पहले उस पर कीजिए जो गर्व के लायक है। भारत की हर भाषा की फिल्म हमारी अपनी फिल्म है, सिनेमा को भाषा में मत बांटिए।

आज रामानंद सागर को सब जानते है, पर जीवी अय्यर को बहुत कम लोग जानते है, क्युकी अय्यर ने वो सिनेमा बनाया, जो लाउड नही था, धीमी रफ्तार का था पर हकीकत के सबसे करीब होता था।। आप उनकी ज्यादातर फिल्मे यूट्यूब पर फिल्म के नाम से सर्च करके देख सकते है, कुछ डबिंग के साथ है कुछ सबटाइटल के साथ। आपने अय्यर की कोई फिल्म देखी है इससे पहले?

#rehan

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